Ad

Mushroom Farming

सरकार के प्रोत्साहन से हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती की तरफ बढ़ी रुची

सरकार के प्रोत्साहन से हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती की तरफ बढ़ी रुची

मोरनी क्षेत्र के कृषकों के लिए मशरूम की खेती वरदान सिद्ध होते दिख रही है। यहां के युवा भी मशरूम की खेती में अपनी तकदीर चमकाते दिखाई नजर रहे हैं। हरियाणा सरकार मशरूम की खेती के लिए अनुदान देकर कृषकों का होसला बुलंद कर रही है। पंचकूला जनपद के मोरनी इलाके के कृषकों के लिए मशरूम की खेती वरदान सिद्ध हो रही है। यहां के अधिकांश बेरोजगार युवा सरकार से अनुदान हांसिल कर मशरूम की खेती मे अपनी तकदीर चमका रहे हैं। मोरनी क्षेत्र के कृषकों के लिए सर्वाधिक मुनाफा इस खेती से हांसिल हो रहा है। यहां पर पहले किसान परंपरागत ढंग से खेती किया करते थे, जिसमें सरसों, तिल, गेंहू, टमाटर और मक्का के अतिरिक्त बाकी नकदी फसलें उगाई जाती थी। मगर जंगली जानवरों के  भय की वजह से ज्यादातर किसान इन फसलों को उगाना बंद करके मशरूम की खेती पर ज्यादा ध्यान देने लगे। हरियाणा सरकार भी अनुदान देकर कृषकों के हौसलों को बुलंद कर रही है। 

खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय कौन-सा होता है 

मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए अनुकूल वक्त दिसंबर के प्रथम हफ्ते से शुरू होकर मार्च के आखिर तक होता है। इसी से जागरूक होकर मोरनी गांव के बहलों निवासी युद्ध सिंह परमार कौशिक ने मशरूम की खेती आरंभ कर दी, जिसमें उन्हें काफी शानदार मुनाफा मिलने की आशा है। हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है। इस काम को करने के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता नहीं होती। किसान इसको छोटे से कमरे से भी चालू कर सकते हैं। इसके पश्चात सरकार द्वारा अनुदान लेकर बड़ा व्यवसाय भी आरंभ कर सकते हैं। 

ये भी पढ़ें:
राज्य में शुरू हुई ब्लू मशरूम की खेती, आदिवासियों को हो रहा है बम्पर मुनाफा

मशरूम उत्पादन का शानदार तरीका

कम्पोस्ट को निर्मित करने के लिए धान की पुआल को भिगोकर एक दिन पश्चात इसमें डीएपी, यूरिया, पोटाश, गेहूं का चोकर, जिप्सम तथा कार्बोफ्यूडोरन मिलाकर इसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। करीब डेढ़ माह के उपरांत कम्पोस्ट तैयार होता है। वर्तमान में गोबर की खाद और मिट्टी को बराबर मिलाकर लगभग डेढ़ इंच मोटी परत बिछाकर उस पर कम्पोस्ट की दो-तीन इंच मोटी परत चढ़ाई जाती है। इसमें नमी स्थिर बनी रहे, इसलिए स्प्रे से मशरूम पर दिन में दो से तीन बार छिड़काव किया जाता है। इसके ऊपर एक-दो इंच कम्पोस्ट की परत और चढ़ाई जाती है। इस प्रकार से मशरूम का उत्पादन आरंभ हो जाता है। 

सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है 

सरकार ने मशरूम उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए जिन तीन योजनाओं पर अनुदान देने का निर्णय किया है, उसमें मशरूम उत्पादन इकाई, मशरूम स्पॉन इकाई और मशरूम कंपोस्ट उत्पादन इकाई शम्मिलित है। इन तीनों योजनाओं की समकुल लागत 55 लाख रुपये है। इसपर कृषकों को 50 प्रतिशत मतलब 27.50 लाख रुपये का अनुदान प्रदान किया जाता है। यदि किसान भिन्न-भिन्न योजनाओं का फायदा लेना चाहें तो इसकी भी छूट है। किसान किसी भी योजना का आसानी से चयन कर सकते हैं।
जाने दुनिया के कुछ दुर्लभ मशरूम किस्मों के बारे में, बाजार में मूल्य है लाखों से भी ज्यादा

जाने दुनिया के कुछ दुर्लभ मशरूम किस्मों के बारे में, बाजार में मूल्य है लाखों से भी ज्यादा

आजकल लोग अपनी सेहत को लेकर काफी ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में वह किसी भी तरह की सब्जियां फल खाते समय इस बात का जरूर ध्यान रखते हैं, कि उससे उन्हें अच्छी तरह से पोषण मिल सके। मशरूम भी एक ऐसी ही सब्जी है। मशरूम को अलग-अलग तरह की सब्जियों के साथ मिलाकर बनाया जा सकता है या फिर ऐसे कई बार सलाद आदि में भी इस्तेमाल किया जाता है। मशरूम की कुछ वैरायटी बेहद दुर्लभ होती हैं। ये सेहत के लिए संजीवनी समान है, लेकिन इन्हें खरीदने के लिए आपको लाखों खर्च करने पड़ सकते हैं। इनकी खेती करना फायदे का सौदा साबित होगा।

यूरोपियन व्हाइट ट्रफल मशरूम

यूरोपियन व्हाइट ट्रफल मशरूम को दुनिया का सबसे महंगा मशरूम कहते हैं। वैसे तो हम सभी जानते हैं, कि मशरूम एक तरह की फंगी है, लेकिन यह मशरूम बेहद दुर्लभ है। इसके दुर्लभ होने का कारण है, कि इस मशरूम की खेती पारंपरिक तरीके से नहीं की जा सकती है। बल्कि यह बहुत से पुराने पेड़ों पर कई बार अपने आप ही उग जाता है।
ये भी देखें: बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान
इस मशरूम में बहुत से चमत्कारी गुण हैं, जिसकी वजह से यह हमेशा ही डिमांड में रहता है। इंटरनेशनल मार्केट में यूरोपियन व्हाइट ट्रफल मशरूम की कीमत 7 लाख से 9 लाख प्रति किलोग्राम बताई गई है।

मत्सुताके मशरूम

जापान के बारे में हम सभी जानते हैं, कि जापान को दुनिया के सबसे महंगे फल, सब्जी और अनाज उत्पादक देश के तौर पर जानते हैं। यहां दुनिया का सबसे दुर्लभ मत्सुताके मशरूम भी पाया जाता है, जो अपनी खुशबू के लिए बहुत मशहूर है। इस मशरूम का रंग भूरा होता है और यह खाने में भी बहुत ज्यादा अच्छा लगता है। अगर इसकी कीमत की बात की जाए तो यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह 3 लाख से 5 लाख का बिकता है।

ब्लू ऑयस्टर मशरूम

आपने व्हाइट ऑयस्टर मशरूम का नाम तो काफी सुना होगा। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं, ब्लू एस्टर मशरूम के बारे में, जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और फाइबर का काफी अच्छा सोर्स है। आजकल मशरूम की यह कि हम भारतीयों के बीच में काफी लोकप्रिय हो रही है। अगर बाजार में इसके मूल्य की बात की जाए तो यह मशरूम बाजार में 150 से 200 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रहा है। साधारण किस्मों के मशरुम के बजाय भारत में इन दिनों ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती का चलन काफी बढ़ रहा है।

शैंटरेल मशरूम

वैसे तो हम सभी जानते हैं, कि मशरूम ज्यादातर जंगली इलाकों में पाए जाते हैं और यह बहुत बार अपने आप ही उठ जाते हैं। लेकिन एक मशरूम की किस्म ऐसी भी है जो यूरोप और यूक्रेन के समुद्र तटों पर पाया जाता है। इसका नाम शैंटरेल मशरूम है। वैसे तो इसके कई रंग हैं, लेकिन पीले रंग का सेंट्रल मशरूम सबसे खास है, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में 30,000 से 40,000 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिकता है।
ये भी देखें: बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

एनोकी मशरूम

मशरूम की है, कि साल 2021 में गूगल की टॉप सर्च रेसिपी में से एक मानी गई है। यह मशरूम ज्यादातर जापान और चीन के जंगली इलाकों में उगाया जाता है और वहीं पर खाया जाता है। यह मशरूम एक जंगली मशरूम है, जो चीनी हैकबेरी, टुकड़े, राख, शहतूत और खुरमा के पेड़ों पर उगता है। इसे विंटर फंगस भी कहते हैं, जिसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम करते हैं। आपको बतादें, कि केसर की तरह ही एनोकी मशरूम की खेती भी एक चारदीवारी में आधुनिक लैब बनाकर की जा सकती है। इसे एनोकी टेक मशरूम भी कहते हैं।

गुच्छी मशरूम

यह मशरूम हिमालय के आसपास और वहां पर सटे हुए इलाकों में पाया जाता है। मशरूम की यह किस्म प्रमुख तौर पर चीन, नेपाल, भारत और पाकिस्तान से सटी हिमालय की वादियों में मिलती है। ऐसा माना जाता है, कि गुच्छी मशरूम अपने आप ही उग जाता है। इसे स्पंज मशरूम भी कहते हैं, जिसमें कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुच्छी मशरूम को 25,000 से 30,000 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बेचा जाता है। विदेशी बाजारों में इस मशरूम का काफी डिमांड है। हिमालय के स्थानीय लोग इस मशरूम को ढूंढने तड़के सुबह जंगलों में निकल पड़ते हैं।
ये भी देखें: मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

ब्लैक ट्रफल मशरूम

व्हाइट ट्रफल मशरूम की तरह ही ब्लैक ट्रफलमशरूम भी बेहद लोकप्रिय हैं। इस मशरूम को खोजने के लिए वैल ट्रेन्ड डॉग्स का सहारा लिया जाता है। ब्लैक ट्रफल मशरूम भी कई विदेशी बाजारों में 1 लाख से 2 लाख रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिक रहा है।
4 मार्च से शुरू होगा मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण, 25 दिनों तक चलेगा कार्यक्रम

4 मार्च से शुरू होगा मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण, 25 दिनों तक चलेगा कार्यक्रम

छोटी सी जगह पर शुरू की जाने वाली मशरूम की खेती किसानों के लिए काफी अच्छा मुनाफा लाती है. इस काम को शुरू करने के लिए बेहद कम लागत लगती है. मशरूम को पोषण का अच्छा और सरल जरिया भी माना जाता है. मशरूम के अच्छे उत्पादन के लिए केंद्र सरकार भी अच्छी पहल शुरू करने जा रही है. इम्यूनिटी स्ट्रांग करने के लिए मशरूम काफी फायदेमंद होता है.पोषण से भरपूर मशरूम की खेती किसानों के लिए मात्र एक ऐसा संसाधन है, जिसकी वजह से किसानों को अच्छा खासा मुनाफा होता है. 

हालांकि बाजार में मशरूम की काफी ज्यादा डिमांड बढ़ चुकी है. मशरूम की खेती करने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती. आप चाहें तो अपने घर की किसी खाली जगह पर मशरूम को आराम से उगा सकते हैं. वहीं ग्रामीण महिलाओं की बात की जाए तो, उनके लिए भी मशरूम की खेती करने आय बढ़ाने में मददगार हो सकती हैं. जहां घर पर ही रहकर महिलाएं व्यापक स्तर पर मशरूम को उगाकर आय का जरिया बना सकती हैंअब मत दीजियेगा. या फिर दीजियेगा तो शाम तक दे सकती हैं. वहीं हमारे किसान भाई भी मशरूम की खेती छोटे स्तर से शुरू करके साइड इनकम कर सकते हैं. जिसे लेकर कृषि विज्ञान केंद्र भी मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने की तैयारी में है.

4 मार्च से शुरू हो रहा प्रशिक्षण

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कृषि विज्ञान केंद्र शाजापुर में मशरूम के अच्छे उत्पादन के विषय पर युवाओं के लिए प्रिशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है. 25 दिनों तक चलने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत 4 मार्च से की जा रही है.

इन चीजों की पड़ेगी जरुरत

कृषि विज्ञान केंद्र शाजापुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर जीआर अम्बावतीया के मुताबिक जो भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेना चाहते हैं, वो प्रतिभागी अपने साथ आधार कार्ड और अपनी 10वीं की मार्कशीट और पासपोर्ट साइज़ की फोटो के साथ अपना रजिस्ट्रेशन कृषि विज्ञान केंद्र गिरवर शाजापुर में करवा सकते हैं.  इसके अलावा प्रतिभागियों का चयन पहले आयें पहले पायें की नीति पर किया जाएगा. इस सम्बन्ध में कृषि विज्ञान केंद्र की कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर गायत्री वर्मा से किया जा सकता है. जिनका मोबाइल नंबर 9575036055 है. 

ये भी पढ़ें: बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

मशरूम के व्यापार में लाभ

कुचल प्रशिक्षण के बाद अगर आप मशरूम का उत्पादन करते हैं, तो बता दें कि, पूरी दुनिया में मशरूम के व्यापार में हर साल 12.9 फीसद की बढ़ोतरी हो रही है. मशरूम के व्यापार में सरकारी मदद भी मिलती है. जिसके लिए आपको व्यावसायिक प्रस्ताव बनाकर सरकारी कार्यालय में जमा करना होता है. इसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र और बैंक खाते से जुड़ी जानकारी को साझा करना होता है. मशरूम के उत्पादन में व्यावसायिक प्रशिक्षण छोटे किसानों को मशरूम की खेती के गुण भी सिखाते हैं, जो बिलकुल फ्री होते हैं. इसके लिए सरकार ने कई प्रशिक्षण केंद्र खोल रखे हैं. जहां मशरूम उगाने से लेकर सभी तरह की तकनीक के बारे में जानकारी दी जाती है.

राज्य में शुरू हुई ब्लू मशरूम की खेती, आदिवासियों को हो रहा है बम्पर मुनाफा

राज्य में शुरू हुई ब्लू मशरूम की खेती, आदिवासियों को हो रहा है बम्पर मुनाफा

विश्व में मशरूम की खेती हजारों सालों से की जा रही है लेकिन भारत में इसकी खेती मात्र 3 दशक पहली ही शुरू हुई है। अगर हाल ही के कुछ वर्षों में गौर करें तो भारत में लोगों के बीच मशरूम खाने का चलन बढ़ा है, जिसके कारण बाजार में मशरूम की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। प्रकृति में मशरूम की हजारों किस्में मौजूद हैं, इनमें से कुछ किस्में ही खाने योग्य होती हैं। इन दिनों मशरूम से बने व्यंजन उच्च श्रेणी के माने जाते हैं, जिसके कारण लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। मशरूम की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए हाल ही कुछ वर्षों में मशरूम की खेती को लेकर भी देश के किसानों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। चूंकि मशरूम का भाव भी अच्छा रहता है इसलिए किसानों का इसकी खेती की तरफ रुझान तेजी से बढ़ रहा है। अब कई राज्यों में अन्य किसानों के साथ-साथ आदिवासी लोग भी मशरूम की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। जिसके कारण अब राज्यों के आदिवासी इलाकों में भी मशरूम की खेती बड़े पैमाने पर की जाने लगी है। इन दिनों महाराष्ट्र के सतपुड़ा जंगल के अंतर्गत आने वाले नंदुरबार जिले में मशरूम की खेती की जा रही है। इस खेती में ज्यादातर आदिवासी सक्रिय हैं। पहले यहां इस खेती को असंभव माना जाता था लेकिन यहां के लोगों ने सरकार द्वारा चलाई जा रही स्कीमों के अंतर्गत प्रशिक्षण लेकर इस खेती को संभव बनाया है। मशरूम की खेती के प्रशिक्षण की वजह से अब बहुत से बेरोजगार लोग इसकी खेती करने में लग गए हैं जिससे जिले में बेरोजगारी कम हुई है। साथ ही जिले के युवा मशरूम की खेती करके अच्छा खास मुनाफा कमा रहे हैं।

ये भी पढ़ें:
मशरूम उत्पादन यूनिट के लिए यह राज्य दे रहा है 40% तक सब्सिडी
महाराष्ट्र का नंदुरबार जिला आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है। जिसके कारण यहां के लोगों के लिए आमदनी के स्रोत बेहद सीमित हैं। ऐसे में ब्लू मशरूम की खेती आदिवासी युवाओं के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी खेती से युवा जमकर पैसा काम रहे हैं, जिससे उन्हे अपना परिवार चलाने में काफी मदद मिल रही है। देखा गया है कि मशरूम की खेती करने वाले ज्यादातर युवा किसान बेहद छोटी सी जगह में ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं। यह बेहद तेजी से विकसित होने वाला मशरूम की किस्म है जो मात्र 15 दिनों के भीतर ही तुड़ाई के योग्य हो जाता है। इससे महीने में 2 से 3 बार तक युवा किसान इसकी फसल को बाजार में बेंच रहे हैं और पैसे कमा रहे हैं। 10 बाय 10 की छोटी सी जगह में खेती करने वाले किसान भी हर महीने 10 से 12 हजार रुपये तक कमा लेते हैं। मशरूम की खेती में बम्पर कमाई को देखते हुए अब अन्य युवा भी इसकी खेती की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
मशरूम से अब मिठाई ही नहीं नमकीन भी बनाई जा रही है

मशरूम से अब मिठाई ही नहीं नमकीन भी बनाई जा रही है

बिहार राज्य में किसानों को मशरूम की खेती करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां पर सरकार मशरूम की खेती करने पर कृषकों को 50 प्रतिशत तक अनुदान राशि प्रदान करती है। मशरूम का नाम कान में पड़ते ही लोगों के दिल में सर्वप्रथम लजीज सब्जी का स्वाद सामने आता है। अधिकांश लोगों को यह लगता है, कि मशरूम से केवल स्वादिष्ट सब्जी ही निर्मित की जाती है। परंतु ऐसी कोई बात नहीं है। फिलहाल मशरूम से बर्फी, ठेकुआ, गुजिया, जलेबी, बिस्किट, लड्डू और पेड़ा समेत विभिन्न प्रकार की मिठाइयां बनाई जा रही हैं, जिनकी बाजार में काफी ज्यादा मांग है।

भारत में मशरूम का सर्वाधिक उत्पादन कहाँ होता है

ऐसी स्थिति में बिहार में सबसे ज्यादा मशरूम की खेती की जाती है। बतादें कि साल 2021- 22 में बिहार के कृषकों ने 28 हजार टन मशरूम का उत्पादन किया था। विशेषकर उत्तरी बिहार में किसान सबसे ज्यादा मशरूम की खेती किया करते हैं। यहां पर कृषकों को मशरूम की खेती करने हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अगर आप मशरूम से निर्मित लड्डू खाएंगे तो आप इसका स्वाद कभी नहीं भूल पाऐंगे।

मशरूम की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है

बिहार में किसानों को मशरूम की खेती करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां पर सरकार मशरूम की खेती करने के लिए कृषकों को 50 फीसद तक अनुदान राशि देती है। यही कारण है, कि बिहार में मशरूम से अचार समेत विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्मित किए जा रहे हैं।

ये भी पढ़ें:
बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर
बिहार के किसान मशरूम से मिठाई के साथ-साथ अब नमकीन डिशेज भी निर्मित कर रहे हैं, जिसकी बाजार में काफी ज्यादा मांग है। मशरूम से निर्मित नमकीन खाने में चटपटे लगते हैं। बिहार का नाम कान में पड़ते ही लोगों के मन में सर्वप्रथम ठेकुआ का नाम आता है। ऐसा मानना है, कि ठेकुआ गेहूं के आटे से तैयार होता है। परंतु, फिलहाल मशरूम से भी स्वादिष्ट ठेकुआ निर्मित हो रहा है, जिसका कोई जवाब नहीं है।
बिहार सरकार मशरूम की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बिहार सरकार मशरूम की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बतादें कि वर्तमान में बिहार सरकार मशरूम के ऊपर विशेष ध्यान केंद्रित कर रही है। बिहार सरकार का कहना है, कि मशरूम की खेती से राज्य के लघु एवं सीमांत किसानों की आमदनी में इजाफा किया जा सकता है। बिहार राज्य में किसान पारंपरिक फसलों समेत बागवानी फसलों का भी जमकर उत्पादन करते हैं। यही कारण है, कि बिहार मखाना, मशरूम, लंबी भिंडी और शाही लीची के उत्पादन में अव्वल दर्जे का राज्य बन चुका है। हालांकि, राज्य सरकार से किसानों को बागवानी फसलों की खेती करने के लिए बंपर सब्सिडी भी दी जा रही है. इसके लिए राज्य सरकार प्रदेश में कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. इन योजनाओं के तहत किसानों को आम, लीची, कटहल, पान, अमरूद, सेब और अंगूर की खेती करने पर समय- समय पर सब्सिडी दी जाती है।

हजारों की संख्या में किसान अपने घर के अंदर ही मशरूम उगा रहे हैं

बतादें कि मशरूम बागवानी के अंतर्गत आने वाली फसल है। साथ ही, मशरूम की खेती में काफी कम खर्चा आता है। मशरूम उत्पादन हेतु खेत व सिंचाई की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है। यदि किसान भाई चाहें तो अपने घर के अंदर भी मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं। फिलहाल, बिहार में हजारों की तादात में किसान घर के अंदर ही मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको काफी अच्छी-खासी आमदनी भी हो रही है। दरअसल, मशरूम अन्य सब्जियों जैसे कि लौकी, फूलगोभी और करेला आदि की तुलना में महंगा बिकता है। अब ऐसी स्थिति में मशरूम की खेती करने पर किसानों को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। यही वजह है, कि बिहार सरकार मशरूम की खेती पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

मशरूम कम्पोस्ट उत्पादन पर 50 फीसद अनुदान

वर्तमान में बिहार राज्य के मशरूम उत्पादकों के लिए काफी अच्छा अवसर है। बतादें, कि फिलहाल कृषि विभाग एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत मशरूम कम्पोस्ट उत्पादन पर 50 प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है। मुख्य बात यह है, कि राज्य सरकार द्वारा कंपोस्ट उत्पादन के लिए इकाई लागत 20 लाख रुपए तय की गई है। उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर किसान भाई इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। यह भी पढ़ें: बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

बिहार में पिछले साल हजारों टन मशरूम की पैदावार हुई थी

बिहार राज्य में बागवानी फसलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार निरंतर कुछ न कुछ योजना जारी कर रही है। बिहार सरकार किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। अगर किसान भाई चाहें, तो अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रखंड उद्यान पदाधिकारी अथवा अपने जनपद के सहायक उद्यान निदेशक से सम्पर्क साध सकते हैं। बतादें, कि बिहार मशरूम उत्पादन के मामले में भारत के अंदर प्रथम स्थान पर है। इसके उपरांत दूसरे स्थान पर ओडिशा आता है। विगत वर्ष बिहार में 28000 टम मशरूम की पैदावार हुई थी।
आर्थिक तंगी के चलते महिला किसान ने शुरू की मशरूम की खेती, आज कमा रही लाखों का मुनाफा

आर्थिक तंगी के चलते महिला किसान ने शुरू की मशरूम की खेती, आज कमा रही लाखों का मुनाफा

महिला किसान संगीता कुमारी ने बताया है, कि बिहार जैसे गरीब राज्य में महिलाओं को भी आत्मनिर्भर होना बेहद आवश्यक है। वर्तमान में राज्य सरकार राज्य की बहुत सारी महिलाएं जीविका से जुड़कर अपनी नई पहचान बना रही हैं। साथ ही खेती से अच्छी खासी आमदनी भी कर रही हैं। बिहार राज्य में महिलाएं भी वर्तमान में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। अब चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो अथवा खेती-किसानी का। आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपना स्थान बना रही हैं। इस लेख में आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में जानकारी देंगे, जो कि सब्जी की खेती से लाखों रुपये की आमदनी कर रही है। आज कल इस महिला किसान की चर्चा जनपद के सभी क्षेत्रों में हो रही है। मुख्य बात यह है, कि यह महिला किसान जैविक विधि के माध्यम से हरी सब्जियों की खेती करती है। यही कारण है, कि उनसे सब्जी खरीदने के लिए अन्य गांव से भी काफी लोग आते हैं।

 

महिला किसान का नाम संगीता कुमारी है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस महिला किसान का संगीता कुमारी नाम है। यह पटना जिला स्थित अथमलगोला प्रखंड के फुलेरपुर गांव की मूल निवासी हैं। वर्तमान में संगीता कुमारी जीरो टिलेज की सहायता से मशरूम और आलू समेत बाकी हरी सब्जियों की भी खेती कर रही हैं। वहीं, इसके साथ साथ वह अन्य महिलाओं को भी खेती करने का प्रशिक्षण दे रही हैं। संगीता कुमारी का कहना है, कि "पहले मेरे पास घर का खर्च चलाने के लिए पैसों कि किल्लत रहती थी। मेरे पास समय पर एक हजार रुपये भी नहीं रहते थे। परंतु, जब से मैंने सब्जी की खेती की है, उनकी आर्थिक स्थिति बदल गई है। आज संगीता खेती की बदौलत वार्षिक दो लाख से ज्यादा की आमदनी कर रही हैं। इससे उनका परिवार भी काफी खुशहाल हो गया है। 

यह भी पढ़ें: इन सब्जियों की खेती से किसान कम खर्चा व कम समय में अधिक आमदनी कर सकते हैं


महिला किसान संगीता ने शुरू की मशरूम की खेती

महिला किसान संगीता कुमारी एक बीघा जमीन में मशरूम, आलू और बाकी फसलों की खेती करती हैं। साथ ही, जीविका में मुख्यमंत्री के पद पर भी कार्यरत हैं। संगीता कुमारी के मुताबिक तो वर्ष 2015 में उनकी पुत्री की शादी हुई। इसके उपरांत उनके घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। अब ऐसी स्थिति में उनके पति ने एक स्कूल में 1500 रुपये महीने पर एक नौकरी चालू कर दी। परंतु, इतने कम पैसे में घर का खर्च तक चलाना कठिन था। ऐसी स्थिती में 2016 में जीविका से जुड़कर संगीता ने 2019 में मशरूम समेत अन्य सब्जियों की खेती करने का प्रशिक्षण लिया। इसके उपरांत उन्होंने घर आकर मशरूम की खेती शुरू कर दी। 

यह भी पढ़ें: राज्य में शुरू हुई ब्लू मशरूम की खेती, आदिवासियों को हो रहा है बम्पर मुनाफा


महिला किसान संगीता को कितनी आमदनी हो रही है

प्रथम बार में उन्होंने मशरूम बेचकर 10 हजार रुपये की आमदनी करी है। साथ ही, जीरो टिलेज विधि के माध्यम से दो कट्ठे में आलू की पैदावार की है। इससे 40 मन से ज्यादा आलू की पैदावार हुई। संगीता कुमारी आगे बताती हैं, कि ये एक बीघा में आलू की खेती के साथ टमाटर, गोभी, मिर्च, बैंगन समेत अन्य सब्जियों का भी उत्पादन करती हैं। इससे उनको वर्ष में 2 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी हो रही है।

Mushroom Farming: मशरूम की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान की सुविधा

Mushroom Farming: मशरूम की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान की सुविधा

बिहार सरकार एकीकृत बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत राज्य के कृषकों को मशरूम की खेती करने पर 50 फीसद तक अनुदान की सुविधा दी जा रही है। जिससे कि राज्य में मशरूम पैदावार के साथ-साथ मशरूम की आमदनी में भी बढ़ोतरी हो सके। मशरूम की खेती कर कृषक कम समय में शानदार आमदनी कर सकते हैं। लेकिन, इसके लिए किसानों को मशरूम की खेती से जुड़ी सही जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मशरूम की खेती के लिए सरकार की ओर से भी आर्थिक तौर पर सहायता की जाती है। इसी कड़ी में अब बिहार सरकार ने राज्य के किसानों को मशरूम की खेती करने के लिए शानदार अनुदान की सुविधा उपलब्ध की है। दरअसल, बिहार सरकार की तरफ से मशरूम की खेती करने वाले कृषकों को तकरीबन 50 फीसद तक की सब्सिड़ी दी जाएगी, जिससे राज्य में मशरूम की पैदावार के साथ-साथ कृषकों की आय में भी बढ़ोतरी हो सके। मशरूम की खेती पर सब्सिडी की यह सुविधा सरकार एकीकृत बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत उपलब्ध करवा रही है। ऐसी स्थिति में आइए बिहार सरकार की ओर से किसानों को मिलने वाली मशरूम की खेती पर अनुदान के विषय में विस्तार से जानते हैं।

मशरूम की खेती पर कितना अनुदान मिलेगा

बिहार सरकार के द्वारा एकीकृत बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत मशरूम की खेती पर किसानों को सब्सिडी की सुविधा शुरू की गई है। सरकार की ओर से इस योजना के लिए कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, जिसके अंतर्गत मशरूम उत्पादन इकाई का खर्चा लगभग 20 लाख रुपये तय किया गया है, जिसमें से राज्य के कृषकों को तकरीबन 10 लाख रुपये तक के अनुदान की सुविधा प्राप्त होगी। ऐसा कहा जा रहा है, कि सरकार की इस योजना में मशरूम स्पॉन एवं मशरूम कंपोस्ट पर 50 फीसद की आर्थिक सहायता मिलेगी।

ये भी पढ़ें:
आर्थिक तंगी के चलते महिला किसान ने शुरू की मशरूम की खेती, आज कमा रही लाखों का मुनाफा

मशरूम की खेती पर अनुदान हेतु आवेदन प्रक्रिया

यदि आप किसान हैं, एवं अपने खेत में मशरूम की खेती करना चाहते हैं, तो बिहार सरकार की यह योजना आपके लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकती है। राज्य के इच्छुक कृषक मशरूम की खेती पर मिलने वाले अनुदान का लाभ उठाने के लिए बिहार बागवानी की आधिकारिक बेवसाइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इस योजना से संबंधित ज्यादा जानकारी हांसिल करने के लिए किसान अपने समीपवर्ती कृषि विभाग से भी संपर्क साध सकते हैं।

जानिए मशरूम की जानी मानी इन 5 उन्नत किस्मों के बारे में

जानिए मशरूम की जानी मानी इन 5 उन्नत किस्मों के बारे में

मशरूम की ये टॉप पांच उन्नत किस्में बटन मशरूम, ऑयस्टर मशरूम, दूधिया मशरूम, पैडीस्ट्रा मशरूम एवं शिमेजी मशरूम प्रजाति कम खर्च में ज्यादा उत्पादन देने में सक्षम है। मशरूम की खेती से कृषक कम समय में ज्यादा आमदनी हांसिल कर सकते हैं। यदि एक नजर से देखा जाए तो लोग मशरूम को काफी पसंद कर रहे हैं।बाजार के अंदर भी इसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। अब ऐसी स्थिति में यदि किसान अपने खेत में मशरूम की उन्नत प्रजातियों की खेती करते हैं, तो वह काफी मोटी आमदनी अर्जित कर सकते हैं।  इसी कड़ी में आज हम भारत के कृषकों को मशरूम की टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कम लागत में ज्यादा उपज देने की क्षमता रखती है। हम जिन मशरूम की उन्नत किस्मों की बात कर रहे हैं, वह बटन मशरूम,ऑयस्टर मशरूम, दूधिया मशरूम, पैडीस्ट्रा मशरूम और शिमेजी मशरूम है। दरअसल, मशरूम की इन उन्नत किस्मों का उत्पादन करने के लिए कृषकों को मृदा की जरूरत नहीं होती है। दरअसल, आप इन्हें अन्य जगहों जैसे कि कंपोस्ट खाद, धान और गेहूं के भूसे और प्लास्टिक के बैग में भी सहजता से उगा सकते हैं। 

मशरूम की टॉप पांच उन्नत किस्में इस प्रकार हैं 

बटन मशरूम - मशरूम की इस प्रजाति को विशेष रूप पर कच्चा अथवा पकाकर खाया जाता है। इसका इस्तेमाल सलाद, सूप एवं पिज्जा आदि उत्पादों में किया जाता है। इस वजह से यह बाजार में सबसे ज्यादा बिकने वाली मशरूम हैं। इसके लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस का तापमान की जरूरी होता है।

ये भी पढ़ें:
राज्य में शुरू हुई ब्लू मशरूम की खेती, आदिवासियों को हो रहा है बम्पर मुनाफा
ऑयस्टर मशरूम - यह मशरूम 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान में उत्पादित होती है। यदि देखा जाए तो यह 3 माह में पककर तैयार हो जाती है। ऑयस्टर मशरूम खाने में मीठी होती है। इसका आकार मखमली की तरह होता है। दूधिया मशरूम- आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि यह मशरूम आकार में काफी बड़ी होती है। वहीं, स्वास्थ्य के लिए भी इसको बेहद अच्छा माना जाता है।  पैडीस्ट्रा मशरूम - पैडीस्ट्रा मशरूम के लिए 28-35 डिग्री सेल्सियस के आसपास तापमान होना चाहिए। इसकी सबसे बेहतरीन विशेषता यह है, कि यह काफी शीघ्रता से तैयार होकर बाजार में बिकने के लिए उपलब्ध हो जाती है।  शिमेजी मशरूम मशरूम की शिमेजी किस्म समुद्र तट के मृत वृक्षों पर उगाई जाती हैं। लोगों के द्वारा मशरूम की इस किस्म को काफी ज्यादा पंसद किया जाता है। क्योंकि यह मशरूम पकने के उपरांत कुरकुरे की भांति स्वादिष्ट लगता है।